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तमिलनाडु को कपास उत्पादकता हेतु केंद्र सरकार से मिल सकते हैं 100 करोड़ रुपये

2025-09-29 12:02:59
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कपास उत्पादकता बढ़ाने के लिए तमिलनाडु को केंद्र सरकार से मिल सकते हैं 100 करोड़ रुपये

केंद्र सरकार का कॉटन उत्पादकता मिशन तमिलनाडु की टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है। इस पहल का उद्देश्य किसानों की आय और कपास की पैदावार को दोगुना करना तथा जिनिंग यूनिट्स का आधुनिकीकरण करना है। कुल 5,900 करोड़ रुपये के आवंटन में से लगभग 100 करोड़ रुपये तमिलनाडु को मिलने की संभावना है।

उद्योग जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि योजना प्रभावी रूप से लागू होती है तो तमिलनाडु की महंगे कपास आयात पर निर्भरता कम होगी और राज्य वैश्विक बाज़ारों में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकेगा।

साउथ इंडिया मिल्स एसोसिएशन के महासचिव के. सेल्वाराजु के अनुसार तमिलनाडु की टेक्सटाइल मिलों को हर साल लगभग 120 लाख गांठ (bales) कपास की आवश्यकता होती है, जबकि राज्य में केवल करीब 5 लाख गांठ ही उत्पादन होता है। उन्होंने कहा कि सही हस्तक्षेप के साथ उत्पादन 25 लाख गांठ तक पहुंच सकता है। लक्ष्य यह होना चाहिए कि 2030 तक उत्पादन कम से कम 15 लाख गांठ तक पहुंचे।

सेल्वाराजु ने बताया कि मिशन का एक मुख्य फोकस बीज विकास और कृषि अनुसंधान है। वर्तमान में किसान प्रति हेक्टेयर 25,000 पौधे लगाते हैं, लेकिन हाई-डेंसिटी प्लांटिंग टेक्नोलॉजी से यह संख्या 60,000 तक हो सकती है। पिछले दो सालों में कुछ क्षेत्रों में इसका पायलट प्रोजेक्ट भी चलाया गया है।

वर्तमान में तमिलनाडु में लगभग 1.75 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती होती है, जिसे मिशन के तहत 2 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है। राज्य उन चुनिंदा इलाकों में से है जहां सर्दी और गर्मी दोनों मौसमों में कपास की खेती होती है, जिससे एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल कॉटन की संभावना भी बढ़ती है।

उन्होंने यह भी कहा कि मजदूरों की कमी कपास खेती की एक बड़ी चुनौती है, ऐसे में मशीनीकरण बेहद ज़रूरी है।

मिशन का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू जिनिंग मशीनरी का आधुनिकीकरण है। तमिलनाडु में जिनिंग तकनीक पुरानी हो चुकी है, जिसे अपग्रेड करने से कपास की गुणवत्ता और दक्षता दोनों में सुधार होगा। (संपूर्ण एग्रो)

इंडियन कॉटन फेडरेशन के अध्यक्ष जे. थुलसीधरन ने कहा कि अनुसंधान पर लंबे समय से बहुत कम फंडिंग हो रही थी। उन्होंने कहा कि अगर मिट्टी और जलवायु के अनुसार बीज की किस्में, प्रिसिजन फार्मिंग तकनीकें, और कोयंबटूर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च (CICR) जैसे अनुसंधान संस्थानों को बेहतर समर्थन दिया जाए, तो तमिलनाडु की उत्पादकता में बड़ा सुधार संभव है।

उन्होंने यह भी कहा कि जैसे-जैसे उत्पादकता बढ़ेगी, उत्पादन लागत घटेगी, एमएसपी का दबाव कम होगा और भारतीय कपास वैश्विक स्तर पर और अधिक प्रतिस्पर्धी बनेगा।

वर्तमान में राज्य में कपास की खेती कुंभकोणम, पेराम्बलूर, मानापरई, ओट्टनचत्रम, वासुदेवनल्लूर और कोविलपट्टी जैसे क्षेत्रों में की जाती है।


और पढ़ें :- खम्मम में कपास फसल को नुकसान




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