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पुणे जिले में कपास की खेती में तेज़ी से वृद्धि

पुणे जिले में कपास उत्पादन में तेज़ उछालपुणे: पुणे जिले में इस वर्ष कपास की खेती में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, और खेती का रकबा सामान्य औसत से कहीं अधिक बढ़ गया है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जहाँ आमतौर पर कपास की बुवाई सालाना 1,122 हेक्टेयर में की जाती है, वहीं इस साल यह आँकड़ा बढ़कर 1,955 हेक्टेयर हो गया है - जो 74% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है।हाल के वर्षों में, जिले में कपास की खेती में लगातार गिरावट देखी गई थी। हालाँकि, यह रुझान अब उलटता दिख रहा है। चालू खरीफ सीज़न के दौरान, दौंड, शिरूर, बारामती, इंदापुर और पुरंदर तालुकाओं के किसानों ने कई पारंपरिक फसलों की बजाय कपास को प्राथमिकता दी है।कृषि विशेषज्ञ इस बदलाव का श्रेय अनुकूल मौसम, समय पर हुई शुरुआती बारिश और बेहतर बाज़ार मूल्यों की उम्मीद को देते हैं। कपास की कम पानी की आवश्यकता ने भी किसानों के निर्णयों को प्रभावित किया है, खासकर पानी की कमी वाले क्षेत्रों में।किसानों की सहायता के लिए, जिला कृषि विभाग गुणवत्तापूर्ण बीजों की आपूर्ति, कीट प्रबंधन संसाधन और खेत पर मार्गदर्शन सुनिश्चित कर रहा है। फसल की स्थिति पर नज़र रखने के लिए अधिकारी नियमित रूप से खेतों का दौरा कर रहे हैं।खेती के विस्तार को देखते हुए, इस साल जिले में कपास उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। हालाँकि, किसान सतर्क हैं और उनका कहना है कि अंतिम उपज और लाभ आने वाले महीनों में मौसम के मिजाज, कीट और रोग प्रबंधन, और कीमतों के रुझान पर निर्भर करेगा।और पढ़ें :- रुपया 03 पैसे बढ़कर 88.10 प्रति डॉलर पर बंद हुआ

कपास की बुवाई में भारी गिरावट: दशक का न्यूनतम स्तर

132 लाख हेक्टेयर से 109 लाख हेक्टेयर: कपास की बुवाई दशक के निचले स्तर परभारत के कपास क्षेत्र में पिछले छह वर्षों में बुवाई क्षेत्र में लगातार कमी देखी गई है, जिससे आगामी उत्पादन रुझानों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।बुवाई क्षेत्र का रुझान:2020-21 में, कपास की बुवाई का क्षेत्र 132.85 लाख हेक्टेयर था, लेकिन उसके बाद से इसमें गिरावट देखी जा रही है। 2024-25 तक, यह क्षेत्र घटकर 112.95 लाख हेक्टेयर रह गया, और वर्तमान 2025-26 सीज़न में, यह और घटकर 109.17 लाख हेक्टेयर रह गया है - जो पिछले छह वर्षों में सबसे कम है।उत्पादन अवलोकन:कपास उत्पादन ने मोटे तौर पर रकबे के रुझान को प्रतिबिंबित किया है। 2020-21 में 352.48 लाख गांठों के उच्चतम स्तर से, उत्पादन 2024-25 में घटकर 306.92 लाख गांठ रह गया। चालू सीज़न (2025-26) के लिए उत्पादन अनुमान अभी प्रतीक्षित है, लेकिन बुआई में कमी को देखते हुए, विश्लेषकों का अनुमान है कि अनुकूल मौसम और उपज में सुधार से गिरावट की भरपाई होने तक इसमें और गिरावट आ सकती है।बाजार परिदृश्य:उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि कम रकबा आपूर्ति को कम कर सकता है, जिससे घरेलू कपास की कीमतों को बढ़ावा मिल सकता है। हालाँकि, आने वाले महीनों में फसल की स्थिति, कीटों के दबाव और वर्षा वितरण पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।साल दर साल घटते रकबे के साथ, हितधारक इस बात पर कड़ी नज़र रख रहे हैं कि क्या भारत का कपास उत्पादन 2025-26 में भी गिरावट जारी रखेगा या बेहतर पैदावार के कारण स्थिर हो जाएगा।और पढ़ें :-ट्रंप-मोदी व्यापार वार्ता पर आश्वस्त

ट्रंप-मोदी व्यापार वार्ता पर आश्वस्त

ट्रंप, मोदी द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं में सकारात्मक परिणाम को लेकर आश्वस्तअमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को ट्विटर के माध्यम से अमेरिका और भारत के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं में प्रगति की घोषणा की और विश्वास जताया कि ये चर्चाएँ सफलतापूर्वक संपन्न होंगी।ट्रंप ने कहा, “मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका हमारे दोनों देशों के बीच मौजूद व्यापार अवरोधों को दूर करने के लिए वार्ताएँ जारी रखे हुए हैं। मैं आने वाले हफ्तों में अपने बहुत अच्छे मित्र, प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे दोनों महान देशों के लिए किसी सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुँचना बिल्कुल भी कठिन नहीं होगा।”राष्ट्रपति ट्रंप की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को लेकर आशावाद व्यक्त किया और दोनों देशों के बीच स्वाभाविक साझेदारी पर जोर दिया।मोदी ने कहा, “भारत और अमेरिका घनिष्ठ मित्र और स्वाभाविक साझेदार हैं। मुझे विश्वास है कि हमारी व्यापार वार्ताएँ भारत–अमेरिका साझेदारी की असीम संभावनाओं को उजागर करने का मार्ग प्रशस्त करेंगी। हमारी टीमें इन चर्चाओं को शीघ्र संपन्न करने के लिए काम कर रही हैं। मैं भी राष्ट्रपति ट्रंप से बातचीत करने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। हम मिलकर अपने दोनों देशों की जनता के लिए उज्जवल और अधिक समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करेंगे।”इन बयानों से यह संकेत मिलता है कि दोनों नेता आने वाले हफ्तों में आगे की वार्ता के लिए तैयारी कर रहे हैं और व्यापार अवरोधों को दूर करने तथा आर्थिक सहयोग को मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय प्रयासों में नया उत्साह आया है।और पढ़ें :-धार में पीएम मोदी 17 सितंबर को करेंगे पीएम मित्रा पार्क का शिलान्यास

धार में पीएम मोदी 17 सितंबर को करेंगे पीएम मित्रा पार्क का शिलान्यास

17 सितंबर को धार में पीएम मि‍त्रा पार्क का करेंगे शिलान्‍यास PM मोदी, कपास किसानों-उद्योग को होगा फायदा।मध्यप्रदेश के धार जिले में देश का पहला पीएम मित्रा (प्राइम मिनिस्‍टर मेगा इंटीग्रेटेड टैक्‍सटाइल रीजन एंड अपेरल) पार्क बनने जा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को जिले की बदनावर तहसील के भैसोला गांव में इस मेगा टेक्सटाइल पार्क का शिलान्यास करेंगे. यह पार्क कपास आधारित इंडस्ट्रियल हब होगा, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिलेगी और लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे. प्रदेश के सीएम डॉ. मोहन यादव ने सोमवार को कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर आयाेजित समीक्षा बैठक में यह जानकारी दी. लगभग 3 लाख रोजगार के अवसर बनेंगेमुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि पीएम मित्रा पार्क से लगभग 1 लाख प्रत्यक्ष और 2 लाख से अधिक अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर मिलेंगे. कुल मिलाकर 3 लाख से अधिक लोगों को इसका फायदा होगा. यह अवसर खास तौर पर कपास उत्पादक क्षेत्रों के किसानों और स्थानीय युवाओं को नई संभावनाएं देगा.इन कपास वाले जिलों को होगा फायदाधार, झाबुआ, उज्जैन, खरगोन और बड़वानी जैसे जिले पहले से ही कपास उत्पादन में आगे हैं. ऐसे में यहां कपास पर आधारित बड़ा औद्योगिक पार्क स्थापित होना किसानों और उद्योग दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा. कच्चे माल की उपलब्धता और उद्योगों के लिए बेहतर आधारभूत ढांचा मिलने से कपास की पूरी वैल्यू चेन एक ही जगह विकसित होगी.फार्म टू फैशन- सब काम एक जगहपीएम मित्रा पार्क का उद्देश्य ‘फार्म टू फैशन’ की संकल्पना को वास्तविक रूप देना है. इसमें धागा उत्पादन, बुनाई, रंगाई और गारमेंट निर्माण तक की पूरी प्रक्रिया एक ही स्थान पर होगी. इससे लागत घटेगी, समय बचेगा और निर्यात क्षमता भी बढ़ेगी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय टेक्सटाइल सेक्टर को प्रतिस्पर्धा में मजबूती मिलेगी.सरकार का अनुमान है कि इस पार्क में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ेगी. टेक्सटाइल और गारमेंट क्षेत्र के बड़े उद्यमी यहां निवेश करेंगे. इससे स्थानीय स्तर पर न केवल रोजगार बढ़ेगा, बल्कि छोटे उद्यमियों और स्टार्टअप को भी अवसर मिलेगा. युवाओं को स्किल डेवलपमेंट के साथ काम करने का मौका मिलेगा और महिलाओं के लिए भी रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे.एप्रोच रोड और अन्‍य तैयार‍ियां तेजप्रदेश की अर्थव्यवस्था में कपास और टेक्सटाइल क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है. इस पार्क के शुरू होने से यह योगदान और मजबूत होगा. औद्योगिक उत्पादन बढ़ने से राज्य के निर्यात में इजाफा होगा और किसानों को भी बेहतर दाम मिलेंगे. ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आय के नए स्रोत विकसित होंगे.यह परियोजना केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना के तहत सात पीएम मित्रा पार्कों में से पहला है, जिसका भूमि पूजन होने जा रहा है. आने वाले समय में अन्य राज्यों में भी ऐसे पार्क स्थापित होंगे. प्रदेश सरकार ने पार्क को लेकर व्यापक तैयारियां शुरू कर दी हैं. परिवहन व्यवस्था, संपर्क सड़क की तैयारी जोरों पर है. वहीं, आयोजन स्थल का लेआउट तैयार हो चुका है.और पढ़ें :-गिरिराज सिंह का 100 अरब डॉलर निर्यात विज़न

गिरिराज सिंह का 100 अरब डॉलर निर्यात विज़न

*केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ने एमएसएमई निर्यातकों की बैठक की अध्यक्षता की, 100 अरब डॉलर के निर्यात का मार्ग प्रशस्त किया*केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ने मंगलवार को एमएसएमई कपड़ा निर्यातकों के साथ एक परामर्श बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें उन्होंने भारतीय आयातों पर हाल ही में लगाए गए 50% अमेरिकी टैरिफ सहित वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, 2030 तक निर्यात को 100 अरब डॉलर तक पहुँचाने के भारत के रोडमैप पर प्रकाश डाला।सिंह ने भारत के सुदृढ़ प्रदर्शन पर प्रकाश डाला: जुलाई 2025 में कपड़ा निर्यात 5.37% बढ़कर 3.1 अरब डॉलर हो गया, जबकि अप्रैल-जुलाई के निर्यात में साल-दर-साल 3.87% की वृद्धि हुई। रेडीमेड परिधान (+7.87%), कालीन (+3.57%), और जूट उत्पाद (+15.78%) जैसे प्रमुख क्षेत्रों ने इस वृद्धि को आगे बढ़ाया। जापान (+17.9%), यूके (+7.39%), और यूएई (+9.62%) जैसे साझेदार बाजारों में भी मजबूत वृद्धि देखी गई।मंत्री महोदय ने 40 नए वैश्विक बाज़ारों में रणनीतिक विविधीकरण की आवश्यकता पर बल दिया, जो सामूहिक रूप से लगभग 600 अरब डॉलर के कपड़ा आयात का प्रतिनिधित्व करते हैं, साथ ही प्रधानमंत्री के "वोकल फॉर लोकल" आह्वान के अनुरूप घरेलू माँग को भी बढ़ावा देना चाहिए।56वीं जीएसटी परिषद बैठक में घोषित जीएसटी सुधारों को "गेम-चेंजर" बताया गया, जिससे लागत कम करने, माँग बढ़ाने और कपड़ा मूल्य श्रृंखला में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने का वादा किया गया। सिंह ने भारत के विकास मंत्र के रूप में सरकार के "खेत से रेशा, कारखाने से फैशन और विदेशी" (5F) फॉर्मूले को दोहराया।निर्यातकों ने सुधारों का स्वागत किया, लेकिन राजकोषीय सहायता, सरल अनुपालन और हथकरघा, हस्तशिल्प तथा जीआई-टैग वाले स्वदेशी उत्पादों की मज़बूत वैश्विक ब्रांडिंग की माँग की। सिंह ने निर्यातकों से प्रमुख वैश्विक बाज़ारों में गोदाम बनाने और अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ताओं तक सीधे पहुँचने के लिए ई-कॉमर्स का लाभ उठाने का आग्रह किया।सरकार ने प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए पहले ही कई उपाय शुरू कर दिए हैं, जिनमें दिसंबर 2025 तक कपास आयात शुल्क में छूट, निर्यात दायित्वों में विस्तार और पीएलआई योजना की विस्तारित अवधि शामिल है।विज़न 2030 की पुष्टि करते हुए, सिंह ने कहा कि भारत का लक्ष्य 250 अरब डॉलर का घरेलू कपड़ा बाज़ार और 100 अरब डॉलर का निर्यात बाज़ार बनाना है, जो बाज़ार विविधीकरण, नवाचार और स्वदेशी-संचालित विकास के ज़रिए संभव होगा।सिंह ने ज़ोर देकर कहा, "भारत अमेरिका और 800 अरब डॉलर के वैश्विक कपड़ा बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करेगा। एमएसएमई को केंद्र में रखकर, हम और मज़बूती से उभरेंगे।"और पढ़ें:-  टैरिफ संकट: तिरुपुर में 40 अरब के कपड़ा ऑर्डर रद्द

टैरिफ संकट: तिरुपुर में 40 अरब के कपड़ा ऑर्डर रद्द

टैरिफ से कपड़ा निर्यातकों के अस्तित्व पर संकट; तिरुपुर सर्वाधिक प्रभावित, 40 अरब के ऑर्डर रद्दअमेरिका के 50 फीसदी टैरिफ ने भारतीय कपड़ा उद्योग की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। निर्यातक टैरिफ के असर को झेलने योग्य नहीं हैं। ऐसे में कपड़ा उद्योग को तुरंत प्रोत्साहन की जरूरत है। एमके रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, पहले के लगाए गए टैरिफ के कारण कपड़ा उद्योग के मार्जिन में गिरावट आई है। वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे उद्योग के मार्जिन में अतिरिक्त टैरिफ के कारण और गिरावट आएगी।रिपोर्ट के अनुसार, उच्च टैरिफ से कपड़ा उद्योग को अमेरिका से नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। पुराने ऑर्डर भी रद्द हो रहे हैं, जिससे इन्वेंट्री बढ़ रही है। ऐसे में उद्योग और खासकर सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिए सरकारी मदद जरूरी है, क्योंकि बड़े निर्यातकों की तरह इनका खाताबही मजबूत नहीं है। उद्योग को टैरिफ के झटके सहन करने और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में प्रासंगिक बने रहने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन की जरूरत है। अगर तत्काल जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो न सिर्फ छोटी कंपनियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा, बल्कि बड़ी संख्या में रोजगार भी खत्म होंगे।तिरुपुर सर्वाधिक प्रभावित, 40 अरब के ऑर्डर रद्ददेश के निटवियर निर्यात में 55-60 फीसदी हिस्सा रखने वाले तिरुपुर क्लस्टर टैरिफ से बुरी तरह प्रभावित है। यहां से करीब 700 अरब रुपये के कपड़े का निर्यात होता है। टैरिफ के कारण तिरुपुर को अमेरिका से मिलने वाले करीब 40 अरब रुपये के ऑर्डर रद्द हो गए हैं।भारत का वैश्विक कपड़ा बाजार में करीब चार फीसदी हिस्सा है, जो बांग्लादेश (13 फीसदी) व वियतनाम (9 फीसदी) से काफी कम है।इन वजहों से भी दबावअमेरिकी खुदरा विक्रेताओं की ओर से भुगतान में देरी हो रही है।बढ़ती इन्वेंट्री ने घरेलू कंपनियों ने अतिरिक्त दबाव पैदा कर दिया है।एमएसएमई अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बाधाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं।मुक्त व्यापार समझौतों में कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों के कारण इसका पूरा लाभ नहीं मिल रहा है।तिरुपुर सर्वाधिक प्रभावित, 40 अरब के ऑर्डर रद्ददेश के निटवियर निर्यात में 55-60 फीसदी हिस्सा रखने वाले तिरुपुर क्लस्टर टैरिफ से बुरी तरह प्रभावित है। यहां से करीब 700 अरब रुपये के कपड़े का निर्यात होता है। टैरिफ के कारण तिरुपुर को अमेरिका से मिलने वाले करीब 40 अरब रुपये के ऑर्डर रद्द हो गए हैं।भारत का वैश्विक कपड़ा बाजार में करीब चार फीसदी हिस्सा है, जो बांग्लादेश (13 फीसदी) व वियतनाम (9 फीसदी) से काफी कम है।इन वजहों से भी दबाव* अमेरिकी खुदरा विक्रेताओं की ओर से भुगतान में देरी हो रही है।* बढ़ती इन्वेंट्री ने घरेलू कंपनियों ने अतिरिक्त दबाव पैदा कर दिया है।* एमएसएमई अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बाधाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं।* मुक्त व्यापार समझौतों में कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों के कारण इसका पूरा लाभ नहीं मिल रहा है।और पढ़ें:-  रुपया 02 पैसे गिरकर 88.13/USD पर खुला

मंजीत कॉटन ईडी संचित राजपाल का CNBC आवाज़ इंटरव्यू

*मंजीत कॉटन के ईडी संचित राजपाल का CNBC आवाज़ पर इंटरव्यू**कपास की बुआई में कमी** 2024-25 में कपास की बुआई: 112.13 लाख हेक्टेयर* 2025-26 में अनुमान: 109.17 लाख हेक्टेयरयानी बुआई में करीब 3% की गिरावट दर्ज हुई है।*भारत की स्थिति और पैदावार*आज दुनिया के लगभग 50 देश कपास उगाते हैं।* भारत क्षेत्रफल में नंबर 1 है, लेकिन उत्पादकता (yield) के मामले में हम 35वें स्थान पर आते हैं।* भारत में औसतन 600 किलो/हेक्टेयर उत्पादन है, जबकि चीन, ब्राज़ील और अमेरिका में यह 2500–2800 किलो/हेक्टेयर तक पहुंच चुका है।इसका बड़ा कारण है कि भारत में अब तक BT सीड्स की केवल 3-4 जेनरेशन इस्तेमाल हो रही हैं, जबकि दुनिया आज 6-7 जेनरेशन पर पहुँच चुकी है।इसलिए पैदावार बढ़ाने के लिए नए बीज और तकनीक लाना बेहद ज़रूरी है। इससे न केवल उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि किसानों को भी कपास की खेती की ओर आकर्षित किया जा सकेगा।*ग्लोबल मार्केट और एक्सपोर्ट पर असर** पिछले कुछ वर्षों से कपास की कीमतें दबाव में रही हैं।* वैश्विक मांग कमजोर रही और ऊपर से टैरिफ वॉर की वजह से स्थिति और बिगड़ी।* कभी भारत अपने उत्पादन का 20% तक एक्सपोर्ट करता था, लेकिन आज स्थिति बदलकर इम्पोर्ट पर निर्भर होने लगी है।*कीमतों और MSP का प्रभाव** भारत में MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) किसानों के लिए सहारा है, लेकिन इसका असर इंडस्ट्री पर पड़ता है।* ऊँचे MSP के कारण इंडस्ट्री को महंगा कॉटन खरीदना पड़ता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन सस्ता उपलब्ध होता है।* यही वजह है कि टेक्सटाइल एक्सपोर्ट धीमे पड़े और बांग्लादेश जैसे देशों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिली।*कपास बनाम मैन-मेड फाइबर** बाजार में अब टेंसिल, बांस (Bamboo) और अन्य मैन-मेड फाइबर तेजी से विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं।* मैन-मेड फाइबर कपास की तुलना में ज्यादा कंसिस्टेंट होते हैं।* फिर भी, दुनिया का रुझान सस्टेनेबिलिटी की तरफ है और इसी वजह से कपास का महत्व बरकरार रहने की उम्मीद है।*आगे का दृष्टिकोण** मौजूदा परिस्थितियों—जैसे टैरिफ, मिलों की स्थिति और वैश्विक मांग—को देखते हुए आने वाले समय में भी कपास की कीमतों पर दबाव बने रहने की संभावना है।और पढ़ें :- रुपया 11 पैसे गिरकर 88.11 प्रति डॉलर पर बंद हुआ

कपास की कीमतें गिरीं: किसानों की मुश्किलें बढ़ीं

*कपास बाज़ार: कपास की कीमतें किसानों को रुलाएँगी; सीज़न शुरू होने से पहले नतीजे?*कपास बाज़ार: केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर तक कपास पर आयात शुल्क 11 प्रतिशत घटाकर शून्य करने का फैसला किया है। इससे कपड़ा उद्योग को फ़ायदा तो होगा, लेकिन किसानों को एक बार फिर निराशा हाथ लगेगी। इस सीज़न में कपास की कीमतें गारंटीशुदा दाम पर ही रहने की संभावना है। (कपास बाज़ार)कपास सीज़न शुरू होने से पहले नतीजे?केंद्र सरकार ने यह फैसला कपास सीज़न शुरू होने में एक महीना बाकी रहते लिया है।यह छूट इसलिए दी गई है ताकि कपड़ा उद्योग को सस्ता कपास मिल सके। हालाँकि, यह स्पष्ट है कि इससे घरेलू कपास को बढ़ावा नहीं मिलेगा, बल्कि कीमतों में गिरावट आएगी।आयात शुल्क शून्य करने के प्रभावव्यापारी घरेलू बाज़ार से खरीदने के बजाय विदेशों से सस्ता कपास आयात करेंगे।इससे हमारे कपास की माँग कम रहेगी।परिणामस्वरूप, किसानों को अपेक्षित दाम नहीं मिलेंगे और कपास बाज़ार में कीमतें गिर जाएँगी।इस वर्ष का गारंटीकृत मूल्यलंबे धागे वाला कपास: 7,710 से 8,110 प्रति क्विंटल।यह मूल्य पाने के लिए किसानों को सीसीआई (भारतीय कपास निगम) क्रय केंद्र पर कपास बेचना होगा।किसानों के लिए अपने खेतों में बोई गई कपास का रिकॉर्ड रखना भी अनिवार्य है।पिछले 5 वर्षों में कपास की कीमतेंवार्षिक औसत मूल्य (₹/क्विंटल)2021 12,0002022 8,0202023 7,0202024 7,5212025 8,110उपरोक्त आँकड़ों से स्पष्ट है कि 2021 के बाद कपास की कीमतों में लगातार गिरावट आई है और इस वर्ष भी किसानों को ज़्यादा राहत नहीं मिलेगी।जिले में कपास की बुवाई की तस्वीरइस वर्ष लगभग 3 लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई हुई है।पिछले वर्ष की तुलना में कपास की खेती में लगभग 1 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।किसानों को अपेक्षित मूल्य न मिलने से कपास के रकबे में लगातार गिरावट का मंज़र देखने को मिल रहा है।कपास पर आयात शुल्क शून्य करने के केंद्र सरकार के फ़ैसले से घरेलू माँग में कमी आएगी। नतीजतन, कीमतों में गिरावट आएगी। किसानों को सीसीआई के ख़रीद केंद्र पर कपास बेचना पड़ेगा। - राजेंद्र शेलके पाटिल, किसान, धामोरीआयात शुल्क समाप्त होने से कपड़ा उद्योग को फ़ायदा होगा। वे कम दाम पर अच्छा माल आयात कर पाएँगे। हालाँकि, इस वजह से जिनिंग उद्योग के चौपट होने की आशंका है। - रसदीप सिंह चावला, सचिव, महाराष्ट्र जिनिंग एसोसिएशनकपास की कीमतों पर पहले से ही दबाव बना हुआ है, ऐसे में केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी। कपड़ा उद्योग को राहत तो मिलेगी, लेकिन किसानों को एक बार फिर निराशा का सामना करना पड़ सकता है।और पढ़ें :- भारत अमेरिकी कपड़ा आयात में वियतनाम-बांग्लादेश से पीछे

भारत अमेरिकी कपड़ा आयात में वियतनाम-बांग्लादेश से पीछे

अमेरिकी कपड़ा आयात वृद्धि में भारत वियतनाम और बांग्लादेश से पीछेभारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (CITI) द्वारा नवीनतम OTEXA व्यापार आंकड़ों पर आधारित एक तुलनात्मक विश्लेषण के अनुसार, जनवरी-जुलाई 2025 के दौरान भारत से अमेरिकी कपड़ा और परिधान आयात वियतनाम और बांग्लादेश की तुलना में धीमी गति से बढ़ा।इस वर्ष के पहले सात महीनों में बांग्लादेश से आयात में 21.1 प्रतिशत और वियतनाम से 17.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि भारत से आयात में 11.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान चीन से अमेरिकी आयात में 19.9 प्रतिशत की तीव्र गिरावट देखी गई।CITI ने बताया कि जुलाई 2025 में, वियतनाम और बांग्लादेश से अमेरिकी आयात जुलाई 2024 की तुलना में क्रमशः 14.2 प्रतिशत और 5.2 प्रतिशत बढ़ा। हालाँकि जून 2025 की तुलना में विकास की गति धीमी रही, लेकिन दोनों देशों ने अमेरिका में अपनी बाजार स्थिति को मजबूत करना जारी रखा।व्यापार आंकड़ों के अनुसार, वियतनाम से अमेरिकी आयात जुलाई 2024 के 1.63 अरब डॉलर से बढ़कर जुलाई 2025 में 1.86 अरब डॉलर हो गया। जनवरी-जुलाई 2025 में वियतनाम से कुल आयात पिछले वर्ष की इसी अवधि के 8.84 अरब डॉलर की तुलना में बढ़कर 10.41 अरब डॉलर हो गया।बांग्लादेश से अमेरिकी आयात जुलाई 2024 के 0.710 अरब डॉलर की तुलना में जुलाई 2025 में 5.2 प्रतिशत बढ़कर 0.750 अरब डॉलर हो गया। जनवरी-जुलाई 2025 के दौरान संचयी आयात बढ़कर 5.110 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के 4.220 अरब डॉलर से अधिक है।जुलाई 2025 में, भारत से आयात जुलाई 2024 के 0.79 अरब डॉलर से 9.1 प्रतिशत बढ़कर 0.860 अरब डॉलर हो गया। जनवरी-जुलाई 2025 में भारत से कुल आयात एक वर्ष पहले के 5.58 अरब डॉलर की तुलना में बढ़कर 6.220 अरब डॉलर हो गया।और पढ़ें :- रुपया 26 पैसे मजबूत होकर 88.00 पर खुला

भारत में कपास की ख़रीद रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने की ओर

भारत में कपास की रिकॉर्ड ख़रीद की ओरइस सीज़न में भारत में कपास की बुआई का रकबा थोड़ा कम हुआ है, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 8.27 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बाद देश रिकॉर्ड मात्रा में कपास (कपास) की ख़रीद के लिए तैयार है। सरकार भारतीय कपास निगम (CCI) के माध्यम से कपास की ख़रीद करेगी। दिसंबर 2025 के अंत तक आयात शुल्क में छूट के कारण क़ीमतों में वृद्धि नहीं होगी, इसलिए किसानों के पास सरकार को बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।कृषि मंत्रालय के अनुसार, 29 अगस्त, 2025 तक भारत का कपास बुआई रकबा 108.77 लाख हेक्टेयर था, जो पिछले वर्ष इसी अवधि के 111.39 लाख हेक्टेयर से 2.62 प्रतिशत कम है। पाँच वर्षों का औसत रकबा 129.50 लाख हेक्टेयर है। कपास की बुआई आमतौर पर उत्तर भारत में मई में शुरू होती है और मध्य भारत के राज्यों में सितंबर के तीसरे सप्ताह तक चलती है।मंत्रालय ने कपास उत्पादन 170 किलोग्राम प्रति गांठ 306.92 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया है, जो 2023-24 के विपणन सत्र से 5.8 प्रतिशत कम है। भारतीय कपास संघ (सीएआई) ने अपनी अगस्त 2025 की रिपोर्ट में 311.40 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान लगाया था। कम रकबा अक्टूबर से शुरू होने वाले 2025-26 के विपणन सत्र में उत्पादन कम कर सकता है। हालाँकि, मौजूदा बाजार की गतिशीलता के कारण सरकारी खरीद मजबूत रहने की उम्मीद है। इस वर्ष मध्यम स्टेपल कपास का एमएसपी 8.27 प्रतिशत बढ़ाकर ₹7,710 प्रति क्विंटल कर दिया गया।व्यापार सूत्रों ने बताया कि उच्च एमएसपी से किसानों को लाभ होता है, लेकिन यह भारतीय कपास को वैश्विक स्तर पर कम प्रतिस्पर्धी बनाता है। आईसीई कपास दिसंबर 2025 अनुबंध 66.03 अमेरिकी सेंट प्रति पाउंड पर कारोबार कर रहा है, जो 356 किलोग्राम प्रति कैंडी ₹45,700 (₹128 प्रति किलोग्राम) के बराबर है। आयात लागत जोड़ने के बाद भी, विदेशी कपास सस्ता रहेगा, जबकि बढ़े हुए एमएसपी के तहत भारतीय कपास की कीमत ₹63,000 प्रति कैंडी से कम नहीं होगी।सरकार ने हाल ही में शुल्क-मुक्त कपास आयात को दिसंबर 2025 तक बढ़ा दिया है, जिससे घरेलू कपड़ा उद्योग को अगले तीन महीनों तक सस्ता कपास मिलता रहेगा। शुल्क हटाने की अवधि शुरू में सितंबर के अंत तक 40-42 दिनों तक सीमित थी, जब मौजूदा विपणन सत्र समाप्त हो जाएगा, लेकिन इसे अक्टूबर से शुरू होने वाले नए सत्र तक बढ़ा दिया गया, जब महीने के मध्य में आवक बढ़ जाएगी।बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि नए सत्र के पहले तीन महीनों के दौरान शुल्क-मुक्त आयात घरेलू कीमतों को बढ़ने से रोकेगा। सस्ते आयात के कारण घरेलू माँग में कमी के कारण, किसान सीसीआई को कपास बेचने के लिए मजबूर होंगे। विशेषज्ञों का अनुमान है कि खरीद 140 लाख गांठ तक पहुँच सकती है, जो मौजूदा सत्र के 100 लाख गांठों से लगभग 40 प्रतिशत अधिक है, जो सरकारी कपास खरीद का एक नया रिकॉर्ड स्थापित करेगा।और पढ़ें:- पंजाब में कपास संकट: बारिश से 20 हजार एकड़ फसल प्रभावित

पंजाब में कपास संकट: बारिश से 20 हजार एकड़ फसल प्रभावित

पंजाब: कपास संकट में : लगातार बारिश से अच्छी फसल की उम्मीदें डूबीं, 20 हजार एकड़ कपास प्रभावित।पंजाब के कुछ हिस्सों में कपास की पहली कटाई शुरू हो गई है, लेकिन प्रमुख खरीफ फसल के लिए प्रतिकूल चल रही बारिश ने किसानों को आर्थिक नुकसान की चिंता में डाल दिया है।क्षेत्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार, '' की खेती के अंतर्गत आने वाली 20,000 एकड़ से अधिक भूमि पर जलभराव का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।आर्द्र जलवायु परिस्थितियों ने फसल को फफूंद के हमले के लिए उजागर कर दिया है, जबकि जैसे-जैसे फसल बड़े पैमाने पर कटाई की ओर बढ़ रही है, घातक गुलाबी बॉलवर्म का संक्रमण भी मंडरा रहा है। कृषि अधिकारियों ने कहा कि अच्छी फसल की उम्मीद थी, लेकिन बारिश ने क्षेत्र को झकझोर दिया, जिससे शुष्क मालवा क्षेत्र में कपास फसल के पुनर्जीवित होने की संभावना कम हो गई।आधिकारिक जानकारी से पता चला है कि मानसा सबसे अधिक बारिश से प्रभावित जिला रहा है, जहां 13500 एकड़ से अधिक कपास की फसल प्रभावित हुई है।फाजिल्का में 6400 एकड़ कपास के खेत जलभराव के कारण पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जबकि जिले के अबोहर क्षेत्र के अन्य इलाकों में भी शुष्क क्षेत्र में बारिश के कारण फसल के नुकसान की आशंका है।मानसा की मुख्य कृषि अधिकारी (सीएओ) हरप्रीत कौर ने कहा कि, पिछले हफ़्ते हुई बार-बार बारिश ने कपास की फ़सल को प्रभावित किया है। हमारी फ़ील्ड टीमें किसानों को नुकसान नियंत्रण के बारे में सलाह दे रही हैं, जो कटाई के अंतिम चरण में है," कौर ने कहा। उन्होंने कहा कि खेतों से पानी निकालने से तभी राहत मिल सकती है जब इस महत्वपूर्ण मोड़ पर फिर से बारिश न हो।कपास किसान जसदीप सिंह ने कहा कि, बारिश फसल के लिए गंभीर खतरा बन रही है।" अबोहर के कृषि अधिकारी परमिंदर सिंह धंजू ने बताया कि सैदांवाली, खुइयां सरवर, आलमगढ़, दीवान खेड़ा और आसपास के इलाकों में 6400 एकड़ से ज़्यादा कपास को नुकसान पहुँचा है।4 अगस्त को हुई भारी बारिश से रेतीले खेतों में पानी भर गया, जिससे पौधे मर गए। धनजू ने बताया, "कपास की पहली तुड़ाई शुरू हो गई है और ताज़ा बारिश से कपास के डोडों पर फफूंद का हमला हो रहा है।"बठिंडा और मुक्तसर में मामूली असर।मुख्य कृषि अधिकारी जगदीश सिंह के अनुसार, कई इलाकों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप देखा गया है और यह हमला और फैल सकता है। अधिकारी ने बताया कि बठिंडा में कम बारिश के कारण खरीफ की फसल पर सीमित असर पड़ा है।लंबे समय तक बादल छाए रहने से इसका असर बढ़ा है, लेकिन फसल पर कोई व्यापक प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। हमें उम्मीद है कि इस बार जिले में कपास की फसल बेहतर होगी," उन्होंने कहा।और पढ़ें :- भारत की कृषि पर तिहरा संकट: बाढ़, बारिश, फसल रोग

भारत की कृषि पर तिहरा संकट: बाढ़, बारिश, फसल रोग

भारत की कृषि भूमि पर तिहरा संकट: पंजाब, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश बाढ़, बारिश और फसले रोग से प्रभावितनई दिल्ली: भारत के कृषि प्रधान क्षेत्र पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बाढ़, लगातार मानसूनी बारिश और फसलों पर वायरल प्रकोप के कारण फसले विनाश का सामना कर रही हैं।लाखों एकड़ खरीफ फसलें नष्ट हो गई हैं, जिससे वित्तीय राहत की तत्काल मांग उठ रही है।पंजाब में बाढ़ से 4 लाख एकड़ कृषि भूमि जलमग्न :पंजाब के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री गुरमीत सिंह खुदियां ने बाढ़ के कारण चार लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि जलमग्न होने के बाद केंद्र से तत्काल राहत पैकेज की अपील की है। अमृतसर, गुरदासपुर और कपूरथला जिले सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, जहाँ कटाई से कुछ ही हफ्ते पहले खड़ी धान की फसलों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है।खुदियन ने कहा, "इन बाढ़ों ने फसलों, ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और आजीविका को अभूतपूर्व नुकसान पहुँचाया है।" महाराष्ट्र मानसून की तबाही से जूझ रहा है :महाराष्ट्र में, 15 से 20 अगस्त के बीच लगातार हुई मानसूनी बारिश ने 29 जिलों के लगभग 14.44 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जलमग्न कर दिया। नांदेड़ सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िला रहा, जहाँ 6.20 लाख हेक्टेयर ज़मीन जलमग्न हो गई, उसके बाद वाशिम, यवतमाल और धाराशिव का स्थान रहा। सोयाबीन, कपास, मक्का, उड़द, अरहर, मूंग, सब्ज़ियाँ, फल, बाजरा, गन्ना, प्याज, ज्वार और हल्दी जैसी फ़सलें प्रभावित हुई हैं।मध्य प्रदेश में सोयाबीन की फसलें पीले मोज़ेक वायरस से खतरे में :भारत का प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, मंदसौर और आसपास के जिलों में पीले मोज़ेक वायरस (YMV) के गंभीर प्रकोप का सामना कर रहा है। इस संक्रमण ने कई गाँवों में फसलों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित किया है, जिससे उपज में नुकसान और 2025 के लिए क्षेत्रीय तिलहन उत्पादन लक्ष्यों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।रबी फसल योजना पर प्रभाव :पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में खरीफ फसलों के नष्ट होने से आगामी रबी सीजन की तैयारियों में तेजी आने की उम्मीद है। किसान नुकसान से उबरने और समय पर बुवाई सुनिश्चित करने के लिए जल्दी से भूमि की तैयारी और बुवाई शुरू कर सकते हैं, जो उत्पादन को बनाए रखने और आय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। इस वर्ष पर्याप्त मिट्टी की नमी समय पर बुवाई में सहायक होगी। कृषि विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि रबी सीजन में और अधिक नुकसान को रोकने के लिए सावधानीपूर्वक योजना और पर्याप्त सहायता उपाय आवश्यक होंगे।और पढ़ें:- भारत का कपास संकट: बड़े निर्यातक से शुद्ध आयातक

भारत का कपास संकट: बड़े निर्यातक से शुद्ध आयातक

बड़े निर्यातक से शुद्ध आयातक: भारत का मंडराता कपास संकट।बीटी कपास, एक जीएम किस्म जिसे कभी सफेद सोने के रूप में महिमामंडित किया जाता था, अब खत्म हो गया है। यही इस संकट का मूल कारण है। यह अब कीटों से सुरक्षा प्रदान नहीं करता।नई दिल्ली: पश्चिमी महाराष्ट्र के 55 वर्षीय किसान कैलाश राव कदम ने कहा कि वर्तमान ग्रीष्मकालीन बुवाई का मौसम कपास के साथ उनका आखिरी अनुभव होगा, एक ऐसी फसल जिसने कभी उनके पूरे गाँव में समृद्धि लाई थी।हालांकि उनके जैसे किसानों को आमतौर पर मुनाफे में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है, लेकिन तीन साल में सबसे कम कीमतें, जिन्हें कपास खरीदार ज़्यादा मानते हैं क्योंकि विदेशों में यह रेशा बहुत सस्ता है, और उत्पादकता में गिरावट ने कदम को कुछ और करने के लिए मजबूर कर दिया है।व्यापार की बिगड़ती परिस्थितियों ने भारत, जो एक बड़ा निर्यातक था, को शुद्ध आयातक में बदल दिया है। इस साल कपास का आयात, 300,000 गांठों के साथ, उसके 17,00,000 गांठों के निर्यात से ज़्यादा रहा है। कदम ने औरंगाबाद से फ़ोन पर कहा, "अगर मैं कपास उगाता रहा, तो यह मुझे भिखारी बना देगा।"कभी सफ़ेद सोने के नाम से मशहूर, लोकप्रिय बीटी कपास, एक आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म, अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी है। यही इस संकट की जड़ है। यह अब कीटों से बचाव नहीं कर पाती, पिछले कुछ वर्षों में इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है, और इसके विकल्प भी बहुत कम हैं।मानसा के एक किसान जोगिंदर ढिंसा ने बताया कि कई किसान, खासकर पंजाब में, सफ़ेद मक्खियों से बचने के लिए देसी (पारंपरिक) किस्मों की ओर रुख कर रहे हैं, जो रातोंरात पूरे खेत को चट कर जाती हैं।इस साल यह संकट और गहरा गया है क्योंकि सरकार ने कपड़ा क्षेत्र को राहत देने के लिए दिसंबर तक चार महीने की अवधि के लिए शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी है, जो रेशे की ऊँची घरेलू कीमतों के बीच घाटे से जूझ रहा है। यह अत्यधिक श्रम-प्रधान क्षेत्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के 50% टैरिफ के सबसे बुरे प्रभावों के लिए भी तैयार है।पिछले हफ़्ते एक अंतर-मंत्रालयी बैठक में जल्द ही तकनीकी प्रगति की आवश्यकता को स्वीकार किया गया और इस वर्ष के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित ₹2500 करोड़ के पाँच वर्षीय कपास उत्पादकता मिशन के कार्यान्वयन की समीक्षा की गई।कपास उत्पादन में गिरावट चिंताजनक है। 2024-25 में, देश में 29.4 मिलियन गांठें (प्रत्येक 170 किलोग्राम) का उत्पादन होने की उम्मीद है, जो एक दशक से भी अधिक समय में सबसे कम है। 2013-14 में बीटी कपास की सफलता के चरम पर, उत्पादन 39.8 मिलियन गांठें था।एक अधिकारी ने कहा कि कपास उत्पादकता मिशन "उन्नत प्रजनन और जैव प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करके, अतिरिक्त लंबे स्टेपल (ईएलएस) कपास सहित जलवायु-अनुकूल, कीट-प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाली कपास किस्मों" के विकास पर केंद्रित होगा।"जैव प्रौद्योगिकी उपकरणों" का अर्थ है कि भारत कपास में उन्नत या अगली पीढ़ी की घरेलू जीएम तकनीक को आगे बढ़ा सकता है, हालाँकि सरकार ट्रांसजेनिक खाद्य फसलों की अनुमति देने के खिलाफ है।समीक्षा बैठक के नोट्स से पता चला है कि जिन जीएम उन्नयनों पर काम चल रहा है, उनमें बायोसीड रिसर्च इंडिया लिमिटेड की स्वामित्व वाली 'बायोकॉटएक्स24ए1' ट्रांसजेनिक तकनीक के फील्ड परीक्षण शामिल हैं। कंपनी ने जीएम नियामक, जेनेटिक इंजीनियरिंग असेसमेंट कमेटी से दूसरे दौर के फील्ड परीक्षणों की अनुमति मांगी है।एक अन्य कंपनी, रासी सीड्स प्राइवेट लिमिटेड ने एक ऐसे जीन के लिए पहले चरण के फील्ड परीक्षणों की मंज़ूरी मांगी है जिसका उद्देश्य पिंक बॉलवर्म से सुरक्षा प्रदान करना है, जो बीटी कॉटन का मुख्य कीट है जिसे मारना था।एक अधिकारी ने कहा, "सरकार बजट में घोषित योजना के तहत इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 1000 जिनिंग मिलों के आधुनिकीकरण पर भी विचार कर रही है।"और पढ़ें :- मोदी-ट्रंप ने बढ़ाया सहयोग का कदम

मोदी-ट्रंप ने बढ़ाया सहयोग का कदम

*प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप ने सुलह की दिशा में पहला कदम उठाया।*प्रधानमंत्री ने शनिवार को ट्रंप के इस बयान पर प्रतिक्रिया दी कि वह हमेशा 'मोदी के दोस्त' रहेंगे और भारत-अमेरिका के विशेष संबंधों को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ने अपनी व्यक्तिगत मित्रता और द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती की पुष्टि की है, जिसके साथ ही भारत और अमेरिका ने व्यापार समझौते और रूसी तेल को लेकर बिगड़े संबंधों को सुधारने की दिशा में पहला कदम उठाया है।प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के इस बयान पर प्रतिक्रिया दी है कि वह हमेशा 'मोदी के दोस्त' रहेंगे और भारत-अमेरिका के विशेष संबंधों को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है। अब दोनों अधिकारियों को एक साथ मिलकर एक ऐसा अंतिम व्यापार समझौता करना होगा जो दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो।दोनों नेताओं के बीच बातचीत के बाद, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के साथ संबंधों को बहुत महत्व देते हैं।एक प्रश्न के उत्तर में, राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट किया कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिका ने भारत को चीन के हाथों खो दिया है। उन्होंने यह भी कहा: "जैसा कि आप जानते हैं, मोदी के साथ मेरी अच्छी बनती है। वह कुछ महीने पहले यहाँ आए थे, हम रोज़ गार्डन गए थे और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी।"दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे दोनों घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों के पक्षधर हैं, इसलिए अगला कदम शायद यह होगा कि वाशिंगटन से भारत के खिलाफ उठ रही तीखी आवाज़ें अब या तो थम जाएँगी या नरम पड़ जाएँगी। इस बात की भी प्रबल संभावना है कि दोनों नेता एक-दूसरे से बात करने के लिए फ़ोन उठाएँ और संबंधों को मज़बूत करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दें।17 जून को राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अपनी टेलीफ़ोन पर बातचीत के बाद, प्रधानमंत्री मोदी ने "X" का इस्तेमाल किया और कहा: "राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक आकलन की मैं तहे दिल से सराहना करता हूँ और पूरी तरह से उनका समर्थन करता हूँ। भारत और अमेरिका के बीच एक बहुत ही सकारात्मक और दूरदर्शी व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है।"प्रधानमंत्री मोदी का "X" वाला बयान रायसीना हिल की भावनाओं को दर्शाता है क्योंकि नई दिल्ली धैर्यपूर्वक वाशिंगटन से उठ रहे शोर के शांत होने और राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अमेरिकी रुख़ पर पुनर्विचार करने का इंतज़ार कर रही थी क्योंकि भारत किसी भी तरह से चीन के क़रीब नहीं जा रहा था। भारत रूस के साथ बातचीत जारी रखते हुए चीन के साथ संबंधों को सामान्य बना रहा था।रायसीना हिल पर माहौल यह है कि अमेरिका को यह समझाने के बाद कि दो स्वाभाविक सहयोगियों के बीच द्विपक्षीय संबंध वैश्विक हित में हैं, उसके साथ व्यापार समझौता करने के सभी प्रयास किए जा सकते हैं।भारत को इस बात की पूरी उम्मीद थी कि संबंध बेहतर होंगे, जब पिछले महीने भारत के एक शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकार ने अमेरिका का दौरा किया और अमेरिकी खुफिया एवं प्रवर्तन एजेंसियों के सभी शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। अमेरिका का संदेश यह था कि व्यापार पर असहमति महज एक छोटी सी बात है और द्विपक्षीय संबंध सामान्य रूप से चलते रहेंगे।और पढ़ें:-  आंध्र प्रदेश: आयात शुल्क हटने से कपास किसानों को झटका

आंध्र प्रदेश: आयात शुल्क हटने से कपास किसानों को झटका

आंध्र प्रदेश: केंद्र द्वारा आयात शुल्क हटाने से कपास किसानों पर भारी असरविजयवाड़ा : केंद्र द्वारा कपास पर आयात शुल्क हटाने के फैसले के बाद आंध्र प्रदेश के कपास किसान नई अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। आने वाले हफ्तों में मिलों द्वारा बड़ी मात्रा में आयात किए जाने की उम्मीद के साथ, उत्पादकों को आगामी सीजन के दौरान घरेलू कीमतों में भारी गिरावट का डर है।गुजरात, तेलंगाना और महाराष्ट्र के बाद, आंध्र प्रदेश भारत के शीर्ष कपास उत्पादक राज्यों में से एक है। केंद्र के इस कदम का उद्देश्य कपड़ा उद्योग पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के बोझ को कम करना है, लेकिन यह उन किसानों के लिए एक बड़ा झटका है जो पहले से ही वर्षों से कम बाजार कीमतों से जूझ रहे हैं।भारतीय कपास निगम (CCI) के बाजार में प्रवेश करने के बावजूद, पिछले दो वर्षों में इसके कड़े खरीद नियम उत्पादकों का समर्थन करने में विफल रहे हैं। किसानों को बिचौलियों को 4,000-5,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अपनी कपास बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है - जो केंद्र द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 7,110 रुपये से काफी कम है।बाजार में और अधिक संकट की आशंका को देखते हुए, केंद्र ने 2025-26 कपास सीजन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ा दिया है, जिससे मध्यम रेशे वाले कपास का मूल्य 7,121 रुपये से बढ़कर 7,710 रुपये और लंबे रेशे वाले कपास का मूल्य 7,521 रुपये से बढ़कर 8,110 रुपये हो गया है।हालांकि, सीपीएम नेता पी. रामाराव ने आयात शुल्क हटाने की आलोचना करते हुए चेतावनी दी कि इससे घरेलू कीमतें गिरेंगी और किसानों का कर्ज बढ़ेगा।उद्योग विश्लेषकों ने भी इस चिंता को दोहराया और इस फैसले को "बिना सोचे-समझे लिया गया कदम" बताया, जिससे किसानों की कीमत पर कपड़ा निर्यातकों को फायदा हो रहा है।खरीफ की फसल नजदीक आने के साथ, किसानों को डर है कि बाजार सस्ते आयातित कपास से भर जाएगा। कई लोगों को चिंता है कि सीसीआई अपने नुकसान को कम करने के लिए खरीद में देरी कर सकता है, जिससे किसान असुरक्षित हो सकते हैं।पूर्व सांसद एम. वेणुगोपाल रेड्डी ने कहा, "शुल्क-मुक्त आयात से बाजार भर जाएगा और कीमतें गिर जाएँगी। जिन किसानों ने पहले ही भारी निवेश कर दिया है, उन्हें गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा।" उन्होंने चेतावनी दी कि इस निर्णय से संकट और बढ़ सकता है तथा एपी के कपास उत्पादक समुदायों में आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ सकती हैं।और पढ़ें:- सीसीआई ने कपास सस्ता किया, 77% ई-बोली से बिक्री

सीसीआई ने कपास सस्ता किया, 77% ई-बोली से बिक्री

सीसीआई ने कपास की कीमतों में कमी की, 2024-25 की खरीद का 77% ई-बोली के माध्यम से बेचाभारतीय कपास निगम (सीसीआई) ने पूरे सप्ताह कपास की गांठों के लिए ऑनलाइन बोली लगाई, जिसमें मिलों और व्यापारियों दोनों सत्रों में महत्वपूर्ण व्यापारिक गतिविधि देखी गई। पाँच दिनों के दौरान, सीसीआई ने अपनी कीमतों में कुल ₹300 प्रति गांठ की कमी की।अब तक, सीसीआई ने 2024-25 सीज़न के लिए लगभग 77,48,700 कपास गांठें बेची हैं, जो इस सीज़न के लिए उसकी कुल खरीद का 77.48% है।तिथिवार साप्ताहिक बिक्री सारांश:01 सितंबर 2025:इस दिन सप्ताह की सबसे अधिक दैनिक बिक्री दर्ज की गई, जिसमें 2024-25 सीज़न से 1,85,700 गांठें बेची गईं।मिल सत्र: 63,600 गांठेंव्यापारी सत्र: 1,22,100 गांठें02 सितंबर 2025:2024-25 सीज़न में कुल 1,71,300 गांठें बिकीं।मिल सत्र: 74,400 गांठेंव्यापारी सत्र: 96,900 गांठें03 सितंबर 2025:बिक्री 58,000 गांठें रही, जो सभी 2024-25 सीज़न में बिकीं।मिल सत्र: 42,700 गांठेंव्यापारी सत्र: 15,300 गांठें04 सितंबर 2025:2024-25 सीज़न में कुल 62,700 गांठें बिकीं।मिल्स सत्र: 11,900 गांठेंव्यापारी सत्र: 50,800 गांठें05 सितंबर 2025:सप्ताह का समापन 21,700 गांठों की बिक्री के साथ हुआ।मिल्स सत्र: 10,200 गांठेंव्यापारी सत्र: 11,500 गांठेंसाप्ताहिक कुल:CCI ने इस सप्ताह लगभग 4,99,400 गांठों की कुल बिक्री हासिल की, जो इसके मजबूत बाजार जुड़ाव और इसके डिजिटल लेनदेन प्लेटफॉर्म की बढ़ती दक्षता को दर्शाता है।और पढ़ें :- गुजरात: कपास फसल नुकसान पर राहत पैकेज, आवेदन शुरू

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पंजाब में कपास संकट: बारिश से 20 हजार एकड़ फसल प्रभावित 08-09-2025 12:04:03 view
भारत की कृषि पर तिहरा संकट: बाढ़, बारिश, फसल रोग 08-09-2025 11:57:27 view
भारत का कपास संकट: बड़े निर्यातक से शुद्ध आयातक 08-09-2025 11:44:32 view
मोदी-ट्रंप ने बढ़ाया सहयोग का कदम 06-09-2025 13:14:54 view
आंध्र प्रदेश: आयात शुल्क हटने से कपास किसानों को झटका 06-09-2025 11:41:42 view
सीसीआई ने कपास सस्ता किया, 77% ई-बोली से बिक्री 05-09-2025 17:54:07 view
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